Saturday, May 25, 2024

आओ पहले मतदान करें

आओ पहले मतदान करें  , फिर बैठें जलपान करें ।।

देश के विकास में , स्वच्छ समाज की आस में
मिलजुल कर योगदान करें ,आओ पहले मतदान करें ।

कृषि और कृषि-विज्ञान से, हितकारी योजनाओं के रास्ते
देश का समृद्ध किसान करें , आओ पहले  मतदान करें ।

महिलाओं की सुरक्षा को , रोज़गार की इच्छा को 
प्राथमिकता पर शिक्षा हो , रखकर ये ध्यान करें ,आओ पहले मतदान करें ।

 शोषित-वंचित की आवाज़ को , समानता और न्याय को
मज़बूत अपना संविधान करें , आओ पहले मतदान करें ।

नफ़रतों के ख़िलाफ़ , भेदभाव के ख़िलाफ़ 
एकता के लिए , अखंडता के लिए 
सर्वधर्म का सम्मान करें , आओ पहले मतदान करें ।

सर्वांगीण विकास , सुदृढ़ समाज, सहकारिता का भाव हो
संरक्षित नई पीढ़ी की मुस्कान करें ,आओ पहले मतदान करें ।।
- मोनिश फ़रीद

Sunday, April 23, 2023

किताब और हम

विश्व पुस्तक दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ -

किताबें अपने आप में ही एक ख़ूबसूरत शब्द है जिसके मायने बहुत खास है। कई बार महबूब का चेहरा किताब होता है तो कई बार समाज ही किताब बन जाता है, कुल मिलाकर वो तमाम चीज़ें जिन्हें आप समझकर इल्म हासिल कर सकते हैं वह किताब हो जाती है ।
किताबें हमें हमारे पूरी शख्सियत को सँवारने और निखारने के हुनर देती हैं । यही किताबें हमें मानवीय , सामाजिक , नैतिक , शैक्षिक मूल्यों तथा जीविकोपार्जन के भी हुनर देती हैं ।
किसी नामालूम शख्स ने बहुत खूबसूरत बात कही है -

पढ़ने वालों की कमी हो गयी है आज इस ज़माने में 
नहीं तो गिरता हुआ एक-एक आंसू पूरी किताब है ।

किताबों पर कहे गए शेरों में से मेरा पसंदीदा शेर -

एक चराग़ और एक किताब और एक उम्मीद असासा
उस के बाद तो जो कुछ है वो सब अफ़्साना है ।
- इफ़्तिख़ार आरिफ़

अंत में बस इतना ही कहना चाहूँगा कि किताबों से दोस्ती कीजिए , किताबों से मोहब्बत कीजिए लोग आपसे मोहब्बत और आपसे दोस्ती करने को इच्छुक रहेंगे । आपकी शख्सियत सँवर जाएगी आप चमकते हुए नज़र आएंगे ।

विश्व पुस्तक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं । 💐💐💐

✍️ मोनिश फ़रीद 

Wednesday, December 28, 2022

प्रेरणा

 जंगल का राजा कहा जाने वाला शेर शिकार के लिए किए गए अपने 75% आक्रमणों में असफल हो जाता है. मतलब वह सौ में 75 बार फेल होता है. अब आप इससे अपने जीवन की तुलना कीजिये, क्या हम 75% असफलता झेल पाते हैं? नहीं! इतनी असफलता तो मनुष्य को अवसाद में धकेल देती है. पर शेर अवसाद में नहीं जाता है. वह 25% मार्क्स के साथ ही जंगल का राजा है. 

इसी घटना को दूसरे एंगल से देखिये! शेर अपने 75% आक्रमणों में असफल हो जाता है, इसका सीधा अर्थ है कि हिरण 75% हमलों में खुद को बचा ले जाते हैं. जंगल का सबसे मासूम पशु शेर जैसे बर्बर और प्रबल शत्रु को बार बार पराजित करता है और तभी लाखों वर्षों से जी रहा है. उसका शत्रु केवल शेर ही नहीं है, बल्कि बाघ, चीता, तेंदुआ आदि पशुओं के अलावा मनुष्य भी उसका शत्रु है और सब उसे मारना ही चाहते हैं. फिर भी वह बना हुआ है. कैसे?

वह जी रहा है, क्योंकि वह जीना चाहता है. हिरणों का झुंड रोज ही अपने सामने अपने कुछ साथियों को मार दिए जाते देखते हैं, पर हार नहीं मानते. वे दुख भरी कविताएं नहीं लिखते, हिरनवाद का रोना नहीं रोते. वे अवसाद में नहीं जाते, पर लड़ना नहीं छोड़ते. उन्हें पूरे जीवन में एक क्षण के लिए भी मनुष्य की तरह चादर तान कर सोने का सौभाग्य नहीं मिलता, बल्कि वे हर क्षण मृत्यु से संघर्ष करते हैं. यह संघर्ष ही उनकी रक्षा कर रहा है. जंगल में स्वतंत्र जी रहे हर पशु का जीवन आज के मनुष्य से हजार गुना कठिन और संघर्षपूर्ण है. मनुष्य के सामने बस अधिक पैसा कमाने का संघर्ष है, पर शेष जातियां जीवित रहने का संघर्ष करती हैं. फिर भी वे मस्त जी रहे होते हैं, और हममें से अधिकांश अपनी स्थिति से असंतुष्ट हो कर रो रहे हैं. 

अच्छी खासी स्थिति में जी रहा व्यक्ति अपने शानदार कमरे में बैठ कर वाट्सप पर अपनी जाति या सम्प्रदाय के लिए मैसेज छोड़ता है कि "हम खत्म हो जाएंगे" और उसी की तरह का दूसरा सम्पन्न मनुष्य झट से इसे सच मान कर उसपर रोने वाली इमोजी लगा देता है. दोनों को लगता है कि यही संघर्ष है. वे समझ ही नहीं पाते कि यह संघर्ष नहीं, अवसाद है. मनुष्य को अभी पशुओं से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है. 

©Monish Fareed



Monday, August 2, 2021

इस्लाम : एक बेहतरीन रास्ता

 इस्लाम एक मुकम्मल ज़ाब्ते हयात है जो हर क़दम पर हमारी रहनुमाई करता है । इस्लाम  सिर्फ़ चंद इबादात, अक़ाएद और दुआओं का नाम नहीं बल्कि ये ज़िंदगी का एक मुकम्मल साँचा हमारे सामने पेश करता है जिसके मुताबिक हम अपनी ज़िंदगी को ढाल कर ही फ़लाहो निजात के मुस्तहिक़ हो सकते हैं ।

इस्लाम एक ऐसा नज़रिया है जिसके जरिए हमें हक़ और बातिल का फ़र्क़ मालूम पड़ता है । इस्लाम ही वो ज़रिया है जो हमें हसद , किना , बुग्ज़ , ग़ीबत , हसद , जमाखोरी , जैसे बुराइयों से दूर कर सकता है । इस्लाम ही हमें हराम और हलाल में बेहतर क्या है इसका पूरा हिसाब बयान करता है ।

इस्लाम को किसी हद में महदूद न करें उसे अपनी ज़िंदगी का पैरहन बनाएं । इंशा अल्लाह आप दुनिया और आख़िरत में चमकते हुए नज़र आएंगे ।


©मोनिश फ़रीद

इश्क़ की इंतेहा : करबला

 करबला में हुआ सानेहा किसी एक दिन या किसी एक मुद्दे पर नहीं हुआ था । ये सालों साल से चली आ रही पुश्त दर पुश्त वो खलिश थी जिसने करबला को अंजाम दिया । हमारे नबी और उनकी आल से चिढ़ने की कोई एक वजह नहीं थी । दरअसल सारा मामला उस एहतेराम(जो कि मदीने वाले अहलेबैत के लिए रखते थे ) का था जिससे यजीदियों और उनके हमदर्दों को जलन होती थी । अपने किरदार और अपने इकलाख को ना दुरुस्त कर उन्होंने उसकी आग में जलने का रास्ता चुना । करबला के होने की एक वजह हज़रत अली का नबी करीम का सबसे चहेता होना भी था । जैसे जैसे नबी करीम को हज़रत अली पर भरोसा और उनपर यक़ीन बढ़ता गया नबी ने हज़रत अली को अपने क़रीबी होने का ऐलान करना शुरू कर दिया । ये बात कुछ को नागवार गुज़री । हालांकि हज़रत अली जैसा बहादुर , दिलेर , होशियार , अक्लमंद और ताक़तवर कोई और न था । हज़रत अली उन चुनिंदा लोगों में थे जो साबसे पहले ईमान ले आए और दीन की सरफराज़ी और उसके दावत के काम में नबी करीम के हर कदम पर साथ रहे । अपनी कम उम्र होने पर भी दीन के लिए उन्होंने नबी करीम का साथ दिया और उसी उम्र में उनके बताए दीन पर ईमान ले आए । लेकिन हसद की आग में जल रहे बेवकूफों को तो गर्त में जाना था तो उन्हें ये बात कहाँ समझ आती की हज़रत अली को चाहने की वजह नबी से उनका रिश्ता भर नहीं है । हज़रत अली उस वक़्त अरब दुनिया के सबसे दानिशमंद शख्सियत के मालिक थे । आज तक उनकी मिसालें दी जाती हैं । आज भी उनके मुक़ाबले में कोई नहीं है ।

वो जाँनिसारी , वो मुहब्बत , वो यक़ीन , वो जज़्बा , वो शौक़-ए- शहादत , वो अल्लाह पर ईमान , वो दीन की फरमाबरदारी , वो ख़ुलूस , इकलाख , मयार , खाक़सारी , हकपसन्दी , सलाहियत , शुक्र और सब्र , अहलेबैत के सिवा कहाँ नज़र आया ?? अल्लाह और उसके रसूल के दीन के लिए शहादत का जाम पीने वाले उन तमाम जाँनिसारों को सलाम जिन्होंने अपना सब कुछ लुटा कर भी उस दीन की हिफाज़त की ।


©मोनिश फ़रीद


Wednesday, March 17, 2021

इमाम हुसैन (अ०स) और हुसैनियत

 " हुसैन "  ये सिर्फ एक नाम नहीं एक विचारधारा है । कर्बला के वाक़ये के बाद दो विचारधारा पैदा हुई पहली - हुसैनियत (वो विचार जो हक़ को ताक़त समझते और उसके लिए ज़ुल्म के आगे कभी नहीं झुके )  और दूसरी - यज़ीदियत , इस विचार में दुनियाभर की बुराई , ऐय्याशी , फितना , चालबाज़ी , धोखेबाज़ी , बातिल , मुनाफ़िक़त का समावेश रहा , ये ताक़त को ही हक़ समझते हैं। हुसैनियत की सबसे अहम बात ये है की आपको ये हर उस जगह जहाँ हक़ , इंसाफ , इंसानियत , सिला रहमी होगी आपको नज़र आ जायेगी । ये नाम " हुसैन " यूँही एक विचारधारा नहीं बन गया है । हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़ात ए मुक़द्दस और उनकी पाक ज़िंदगी के एक एक लम्हे जो ये बयाँ करते हैं कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जब भी बोले हक़ बोले , जब भी खड़े हुए तो हक़ और इंसाफ के लिए खड़े हुए , अपनी पूरी हयात में उन्होंने सिर्फ दुनिया को हक़, इंसाफ , सिला रहमी,  इंसानियत और बेहतरीन इंसान बनने का ही पैग़ाम दिया । यूँही कोई हुसैन नहीं बन जाता , हुसैन बनना इतना आसान नहीं है । जिन जिन इम्तिहान पर खरे उतरने पर हुसैन बना जा सकता है वो इंसान के सोंच के बाहर है । पूरी ज़िंदगी अल्लाह की रज़ा पर चलना , अल्लाह और पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के दीन पर अपना सब कुछ न्यौछावर कर देना ,अपने नाना हुज़ूर सरवरे कायनात से किये वादे के लिए अपनी ज़िंदगी जीना और सबसे अहम अपने नाना की उम्मत( आने वाली नस्लों ) के लिए उस वक़्त हक़ और इंसाफ के साथ खड़े होना जब साथ मे 72 हों और सामने हज़ारों । इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का एक विचारधारा में बदल जाना इतना आसान नहीं रहा । उन्होंने हक़ के लिए अपने जवान बेटों की शहादत देखी , अपने 6 माह के बेटे को प्यास से तड़पते देखा , अपनी बहनों अपनी बेटियों को प्यास से तड़पते देखा , अपना घर , खानदान , कुनबा सब कुछ हक़ के लिए इंसाफ के लिए अल्लाह के लिए खड़ा किया और अल्लाह की राह में कुर्बान किया । कर्बला की रेत पर प्यास की आलम में यज़ीदी लश्कर की बर्बरता के सामने डटे रहना और दुनिया को ये पैग़ाम सुनाते रहना की किसी भी हाल में हक़ और इंसाफ के साथ खड़े होने में ही सारी इंसानियत और इंसानी क़ौम की भलाई है । हज़ारों के सामने 72 जाँनिसार साथियों के साथ शहादत का जाम पीने वाला ही हुसैन(अ०स) बन पाता है । ना कोई हुसैन जैसा हुआ है और ना ही आगे होगा । अब सिर्फ उनके  विचारों और उनके बताए हुए रास्ते पर चलना ही असल मायने में हुसैन अलैहिस्सलाम को मानना और उनकी पैरवी करना है ।अपने विचारों के ज़रिए शहादत के बाद भी आज तक हुसैन अलैहिस्सलाम का नाम एक विचारधारा के रूप में जिंदा है । 

‌हुसैनियत का दामन थामिए । इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा की पैरवी कीजिये उसपर अमल कीजिये । हमारा आपका यही अमल यही पैरवी असल में उनकी शहादत का इनाम होगा, हमारी तरफ़ से एक खूबसूरत तोहफ़ा होगा ।

इस विचारधारा के समर्थकों और अमल करने वालों को इंशा अल्लाह दुनिया वा आख़िरत में अल्लाह अपनी पनाह में अपनी रहमतों के साए में रखेगा ।

हज़रत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं -


शाह अस्त हुसैन बादशाह अस्त हुसैन

दीन अस्त हुसैन दीन पनाह अस्त हुसैन


सर दाद ना दाद दस्त दर दस्ते यज़ीद

हक़्क़ा के बिनाय ला इलाह अस्त हुसैन ।


हुसैनियत ज़िंदाबाद । या हुसैन ज़िंदाबाद ।

विलादत ए हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम मुबारक 💐💐

Monday, March 8, 2021

Womens And Islam

 

The first person to embrace Islam was a woman; Khadija (ra).


The greatest scholar of Islam was a woman; Aisha (ra).


The person who loved the Prophet (saw) the most was a woman; Fatima (ra).


 

Despite misconceptions, the status of women in Islam is that of a beloved equal. In the midst of a deep historical context, the Prophet (saw) preached boldly on the importance of women; celebrating their unique contributions to family and society, condemning the ill-treatment of women and campaigning for their rights.

Many of the negative stereotypes around women in Islam arise not from Islamic guidance but from cultural practices, which not only denigrate the rights and experiences of women, but also stand in direct opposition to the teachings of Allah (swt) and His Prophet (saw).

Far from the stereotype of the voiceless and veiled Muslim woman, Shaykh Ibn Baaz argues, “There is no doubt that Islam came to honour to the woman, guard her, protect her from the wolves of mankind, secure her rights and raise her status.”

Islam states clearly about womens and their equal fair rights. Islam is totally against of dowry system. Today dowry system is most important loophole in suppression of womens right and their security.

Islam stands strongly with womens in their equal rights of property of parents. I found that Islamic system provides a way by which pre and post marriage life of a women can be summed up smoothly.

Islamic culture of living provides a safer environment for womens. 

On the Occasion of International Womens Day I would like to wish all the womens of the world , have a prosperous and healthy wealthy long life ahead.

I am appealing to the society for a safer , fair and respectful treatments with womens.

I want to thanks all the womens around my personal life for being so caring and providing me a supportive environment.

आओ पहले मतदान करें

आओ पहले मतदान करें  , फिर बैठें जलपान करें ।। देश के विकास में , स्वच्छ समाज की आस में मिलजुल कर योगदान करें ,आओ पहले मतदान करें । कृषि और क...