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Tuesday, September 29, 2020

हृदय का मूल स्वरूप

 आज विश्व हृदय दिवस है । यह अलग बात है कि ये दिन हृदय स्वास्थ्य संबंधित रोगों के प्रति जागरूकता और उसके उपचार संबंधी जागरूकता के लिए पूरे विश्व में मनाया जाता है । मेरा मानना है कि हृदय को स्वस्थ रखने का एक उपाय आध्यात्म और सूफ़ीवाद भी है । ये एक ऐसा मार्ग है जिससे हृदय परिवर्तन सबसे तीव्र और सबसे असरदार होता है । हृदय को स्वस्थ रखने के लिए जहाँ चिकित्सा विज्ञान अपना तरीका बताता है वहीं दूसरी तरफ आपको सूफ़ीवाद और आध्यात्म इससे स्वस्थ रहने और सफल रहने का एक अलग मार्ग दिखाता है । खानपान में संतुलन न होना , नियमित शारीरिक व्यायाम का न होना और साथ ही वो मनोदशा जो आपको हमेशा वो बातें सोंचने पर मजबूर करती हैं जो आपके हृदय पर अतिरिक्त भार ,दबाव और कुंठा उत्पन्न करते हैं । यही भार , दबाव और कुंठा आपके हृदय को विचलित करते रहते हैं जिससे आपका मन और आपका मस्तिष्क हमेशा उन गलियों में विचरण करते रहते हैं जहाँ का रास्ता बीमारियों की तरफ बढ़ता रहता है । जहाँ तक सूफ़ीवाद और आध्यात्म के मार्ग से उपचार की बात है तो उसके पीछे तर्क यह है कि ये मार्ग हमेशा संसार और उसमें व्याप्त अनैतिक , असामाजिक और अधार्मिक कार्यों से आपको दूर रखने में सहायक है । सूफ़ीवाद का तो उद्देश्य ही है टूटे हुए (मनोवैज्ञानिक रूप) दिलों को सहारा देना या उनमें वो आत्मविश्वास पैदा करना जिससे उनकी मनोदशा सकारात्मक हो । तमाम धर्मों ने अपने उद्देश्यों में हृदय के शुद्ध होने और उसमें प्रेम , भावना , स्नेह, करुणा,परोपकार, दीनता ,सकारात्मकता,पर मुख्य रूप से बल दिया है असल मे यही हृदय की शुद्धता का अर्थ भी है । एक स्वस्थ और शुद्ध हृदय के निर्माण में सूफ़ीवाद और आध्यात्म की शिक्षा आवश्यक है ।

प्रेम का निवास साथ हृदय को माना जाता है,लेकिन हृदय ही क्यों?कोई और जगह क्यों नही ?क्या आपने कभी सोचा है इस बारे में?क्योंकि हृदय के अंदर हमारे शरीर की समस्त शक्तियों का वास होता है।अगर हमारा अन्तःकरण शुद्ध है,हमारा हृदय पवित्र है तो सर्वप्रथम किसी भी वस्तु,प्राणी या जीव के अंदर प्रथम प्रेम की अनुभूति यहीं से प्रारम्भ होती है।और मन के विचारों द्वारा पुष्ट होती है,फिर चाहे वो प्रेम सजीव के लिए हो या निर्जीव के लिए।बहुत से लोग बस विपरीत लिंग आकर्षण को ही प्रेम मानते है। वस्तुतः ये सच बात नही है,प्रेम को हम किसी विचारधारा में नही बांध सकते है,क्योंकि ये सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का आधार प्रेम है ,प्रेम पर ही टिक हुआ है ये समस्त संसार।कुछ लोग अक्सर कर कूछ लोग आकर्षण को ही प्रेम समझ लेते है,जबकि आकर्षण और प्रेम में बहुत बड़ा अंतर है।आकर्षण प्रेम का पहला पायदान जरूर है ,परंतु वास्तव में आकर्षण में प्रेम नही है।प्रेम तो असीमित ,अकल्पित,अपरभाषितअपरमिति,और अकथनीय उस परिकल्पना है जिसको समझ आ गयी वो इस दुनिया के राग रंग को छोड़कर बस उसी में समाहित हो जाता है।मोहरहित हो जाता है।हालाँकि यहां कुछ विद्वान लोग इस बात से सरोकार नही रखेंगे की मोह के बिना भी प्रेम हो सकता है क्या?तो उन विद्वानों को बता दूँ प्रेम में अगर मोह है तो वो प्रेम की सम्पूर्णता नही है,क्योंकि मोह में हमेशा स्वार्थ छिपा होता है,और जहां स्वार्थ होता है वहां प्रेम हो ही नही सकता।हालाँकि ये बात सोचने में थोड़ी अजीब लग सकती है परंतु ये कटु सत्य है।क्योंकि प्रेम की पूर्णता तो उसके अपने अंदर ही समाहित है।


        सूफ़ीवाद तथा आध्यत्मिक शिक्षा में हृदय का महत्व


सूफ़ीवाद तथा आध्यात्मिक शिक्षा का मूल भाव ही हृदय है । इन विषयों की शिक्षाओं में हृदय की शुद्धता और हृदय संबंधित मनोभावों की शुद्धता पर अत्यधिक बल दिया जाता है । ये विषय मनुष्य को संसार में फैले सांसारिक रोग (कपट,द्वेष,ईर्ष्या, लोभ,नकारात्मकता,सामाजिक और धार्मिक असहिष्णुता , सभी प्रकार की कलह , मानसिक विकार , और मानसिक तनावों) से दूर रखते हुए जीवन को आनंदमयी और सैद्धांतिक मूल्यों के साथ निर्वहन करने की शिक्षा देते हैं । मैंने सूफ़ीवाद को मनुष्य के अंतर्मन का अहम विषय मानते हुए अनेकों सूफ़ी संतों और आध्यात्मिक गुरुओं के जीवन और उनके उपदेशों को पढ़ा और सुना है । इस विषय की शिक्षा प्राप्त करने में मैंने मौलाना जलाउद्दीन रूमी का ये शे'र काफी सार्थक पाया -


"यक ज़माना सोहबते बा औलिया

बेहतर अज़ सद साला ता'अत -ए-बे रिया"


अर्थ- किसी औलिया की सोहबत का एक अरसा आपके उस इबादत से बेहतर जिससे घमंड, ईर्ष्या ,धूर्तता ,कपट आदि का अंत न होता हो ।

इस शेर के ज़रिए मौलाना रूमी ने ये बताने की कोशिश की है कि या तो आपकी इबादत ऐसी हो जिससे सामाजिक और मानसिक विकार को दूर हों या फिर आप सोहबत किसी औलिया की करिए जिससे आपको वो ज्ञान प्राप्त हो जो हृदय और जीवन दोनों पर सकारात्मक प्रभाव का प्रकाश फैलाये । औलिया किसी मनुष्य को तब कहा जाता है जब उसमें सांसारिक लोभ,कपट,लालच,ईर्ष्या, मोह-माया, बेईमानी,छल,द्वेष,बदला लेने की भावना,इत्यादि बुराइयाँ न हों ।

ऐसे व्यक्ति आपको शिक्षा भी अपने हृदय की गहराईयों से देंगे और उनकी शिक्षा का असर भी होगा । 

प्रत्येक धर्म में ये शिक्षा दी गयी है जिसमें कहा जाता है कि हर मनुष्य को दूसरों के प्रति प्रेम और संवेदना के साथ ही दयालुता और भाईचारे से आपस में मिल-जुल कर जीवन व्यतीत करना चाहिए । 

खासतौर पर अगर इस्लाम की बात करूँ तो इस्लाम में पैगंबर मुहम्मद ने ही इस सबसे पहले इस बात पर ज़ोर दिया कि किसी का दिल दुखाना सबसे बड़ा गुनाह है । इस्लाम के अनुसार कयामत के दिन सारे गुनाहों की माफ़ी अल्लाह से होगी लेकिन किसी से व्यक्तिगत तकलीफ की माफी उस शख्स से ही होगी जिसका आपने दिल दुखाया या नुकसान किया है ।इस्लाम आपकी ऐसी किसी इबादत को सही नहीं मानता जिसके करने से आपके दिल से बुराइयाँ दूर न होती हों । जिस इबादत को करने के बावजूद आपमें वो ऐब मौजूद हैं जिससे समाज में गंदगी फैलती हो तो वो इबादत आपके मुँह पर फेंक दी जाएगी ।

सूफ़ीवाद और आध्यात्म अपने धार्मिक शिक्षा के तहत ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग भी हृदय को ही बताते हैं । चूँकि इन विषयों के अनुसार ईश्वर का निवास स्थान ही हृदय है । ईश्वर का कोई भौतिक स्वरूप तो होता नहीं है ईश्वर इस ब्रह्माण्ड के कण-कण में समाहित है ।वह ढूँढने वालों की निगाहों में या उसके जज़्बे में ही निहित होता है । ढूँढने वालों ने तो इसे मनुष्य के हृदय में ही सबसे नज़दीक पाया है । तमाम ऐसे उदाहरण हैं जिससे यह साबित होता है कि किसी औलिया या सोहबत से अनेकों को ईश्वर की प्राप्ति हुई है । वे उस मक़ाम पर जा पहुँचते हैं जहाँ से उनके बोले गए हर एक शब्द ईश्वर के शब्द हो जाते हैं । ईश्वर का संदेश हर धर्म की अपनी किताबों या देवदूतों की वाणी के संग्रह से आपको मिल जाएगा लेकिन उसे व्ययवहारिक और क्रियात्मक रूप से इन्हीं सूफी संतों और आध्यात्मिक गुरुओं ने फैलाया है । इन्होंने ही अपने जीवन में धार्मिक आदर्शों को समाहित कर दुनिया को ये बताया है कि ईश्वर तक पहुँचने का सीधा , साफ और निकट मार्ग हृदय है । सूफ़ीवाद में हृदय का मार्ग कहता है कि दूसरों से अच्छा सुलूक करो , भूखे को खाना खिलाओ , किसी पर ज़ुल्म न करो , घमंड ईर्ष्या हसद किना बुग्ज़ न रखो , लालच न करो , धोखा न करो , बुराई न करो , चोरी और बेईमानी न करो , औरतों से इज़्ज़त से पेश आओ , बुजुर्गों की खिदमत करो , बच्चों को प्यार दो , जीव-जंतुओं से प्यार करो, प्रकृति से प्रेम करो उसका ख्याल करो, किसी को ठेस न पहुँचाओ , किसी से भेदभाव न करो , सांसारिक रूप से जिसमे धन दौलत रुतबा हो और धार्मिक आधार से जहाँ जात-पात का भेदभाव हो इससे दूर होकर सबको बराबर समझो ,विद्वान की इज़्ज़त करो उससे विधा हासिल करो , सत्य की तलाश करो , हक़ के साथ डटे रहो इत्यादि ।

उदाहरण -1- समनान के बादशाह अशरफ़ जहाँगीर का हृदय परिवर्तन भी एक औलिया ने किया जिससे उन्हें ये ज्ञान हुआ कि ईश्वर उन्हें महलों में नहीं बल्कि दुनिया की तमाम बुराइयों से दूर होने पर ही मिलेगा और उन्होंने अपना राजपाट छोड़ दिया और निकल पड़े असल दुनिया की तलाश में जिसके प्राप्त होने पर उन्हें हज़रत मख़्दूम अशरफ़ जहाँगीर समनानी र०अ के नाम से जाना जाने लगा और वे किछौछा उत्तरप्रदेश में रहने लगे । उनकी प्रसिद्धि के चर्चे पूरे हिंदुस्तान में हैं और आजतक उनकी मज़ार पर फूलों की चादर के साथ अकीदतमंद अपने दुखों तथा परेशानियों के निवारण के लिए अपना दामन फैलाये खड़े रहते हैं ।

2- राजकुमार सिद्धार्थ ने एक पक्षी की करुणा पर अपना राजपाट और विलासिता का जीवन त्याग कर सत्य अहिंसा और ब्रह्म के तलाश में निकल पड़े और अन्ततः उन्हें वो हासिल हुआ । आज दुनिया भर में उनके अनुयायी उनके उपदेशों का पालन करते हुए अपने जीवन को सुखी और समृद्ध महसूस करते हैं ।


3- मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आचरण , निष्ठा ,कर्तव्यपरायणता, न्याय,और वचनबद्धता को देख लीजिए जिससे उन्हें पूरी दुनिया महाराजा श्री राम से मर्यादा पुरुषोत्तम राम कहने लगी । 


असल में आप किसी भी धर्म के उपदेशों , उनके ईश्वरीय दूतों के उपदेशों या धर्म के सही मार्ग पर चलेंगे तो हर जगह आपको हृदय का ही महत्व नज़र आएगा । और इसी मार्ग पर चलते हुए आपको सुख , समृद्धि तथा शांति का एहसास होगा । 

अंत में सबको एक सलाह देते हुए अपना लेख समाप्त करता हूँ कि मनुष्य के भीतर और प्रकृति के कण कण में वास करने वाले ईश्वर को पहचानिए और उसे प्राप्त कीजिये । जीवन सफल हो जाएगा । आप सुख और शांति से आनंदमयी जीवन व्यतीत कर सकेंगे।

हृदय दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं आपको एक स्वस्थ और शुद्ध हृदय के लिए दुआओं सहित ढेर सारा प्यार ।

©मोनिश फ़रीद सिद्दीक़ी



Tuesday, September 22, 2020

Islam and Peace

 Islam is the religion of peace and mercy for all creatures. But, now a day, some extremist has spread misconception about the Islam, that as, it is the religion of sword for terror. But, the actual fact is that, Islam is the religion of peace and it condemns extremism and violence. Islam promotes the peace, calm, harmony, any tranquility in society. Islam is a peaceful religion, it's best examples, we can see, in the practical life of Holy Prophet (peace and blessing of Allah be upon him, PBUH). He was the messenger of Allah (SWT) to convey the message of honesty, piousness, peace, mercy, integrity, and love. He had never done any activity which indicate act of terrorizing, misconduct, racism and violation against humanity. Even though, he showed the mercy on animals, insects and plants. The world knows him, as a 'Rehmatul-Lil-Aalamin' or Mercy into the world. From the life of Holy Prophet (PBUH), it is concluded that Islam is the religion of peace and humanity. It did not spread by the forced of sword, rather, it spread by its golden quality. Islam basically educates the ways of pleasant and peaceful manners to regulate the society and as well as the world. Through this article, this message has been conveyed, that Islam is a peaceful religion for all creatures and have been given examples from the life of Hazrat Muhammad (PBUH)