जब आप प्रेम में होते हैं और ओस की हर बूंद, पेड़ का हर पत्ता और धरती का हर कण जान लेता है कि आप प्रेम में है। जब प्रेम होता है तो बस प्रेम ही होता है। ‘मैं’, ‘तुम’, ‘यह’, ‘वह’, ‘इससे’, ‘उससे’ कुछ नहीं रह जाता, बस प्रेम रहता है। प्रेम को आप सोच नहीं सकते, प्रेम पर विमर्श नहीं कर सकते, प्रेम को उत्पन्न नहीं कर सकते, प्रेम को अपना नहीं सकते… प्रेम है असीमित और असृजित! प्रेम तो बस होता है- अनंत, अनादि और अनहद!
“क्या आप प्रेम के रास्ते पर चलना चाहते हैं? तो, पहली शर्त यह है कि खुद को धूल और राख जितना अकिंचन बनाइए।” –जलालुद्दीन रूमी
“प्रेम का अर्थ साथ जीने के लिए किसी को पा लेना नहीं है, बल्कि ऐसे व्यक्ति को पाना है जिसके बिना जिया न जाए।” –रफाएल ऑर्टिज़
प्रेम क्या है, अगर समझो तो भावना है,
इससे खेलो तो एक खेल है ।
अगर साँसों में हो तो श्वास है और दिल में हो तो विश्वास है,
अगर निभाओ तो पूरी जिंदगी है और बना लो तो पूरा संसार है ।
प्रेम तो वही है जो हृदय की अनंत गहराई से किया जाता है और जिसमें मैं नहीं हम की भावना हो।
प्रेम तो जिया जाता है, पाया नहीं जाता है ।
सिर्फ पाने के लिए प्रेम किया जाए वो व्यापार होता है ।
प्रेम, ईश्वर है, जब तक इसमें आसक्ति और स्वार्थ न मिलाया जाए। जब इसमें स्वार्थ मिलेगा तब प्रेम नहीं होगा ।
खुसरो दरिया प्रेम का उल्टी वा की धार
जो उतरा सो डूब गया , जो डूबा सो पार.......
बहुत ही सुन्दर लेख।
ReplyDeleteवास्तव में बहुत अच्छी तरह से समझाया प्यार का मतलब
ReplyDeleteExtremely adorable bhai 👍👍👌
ReplyDeleteKisi ka lekh uske dil ki gehrai ko darshata hai...bahoot badhiya bhai
ReplyDeleteNice bhai bhutacha
ReplyDeleteआपके द्वारा लिखा गया हर एक वाक्य प्रेम के परिप्रेक्ष्य में सम्यक अर्थपूर्ण एवं भावपूर्ण है|
ReplyDeleteNice Bhai bahut khub
ReplyDeleteबहुत खूब।।।
ReplyDeleteबहुत ही खूसूरती से अपनी बात कही।।।
Well done
Lajawab
ReplyDeleteShandar
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