Wednesday, March 17, 2021

इमाम हुसैन (अ०स) और हुसैनियत

 " हुसैन "  ये सिर्फ एक नाम नहीं एक विचारधारा है । कर्बला के वाक़ये के बाद दो विचारधारा पैदा हुई पहली - हुसैनियत (वो विचार जो हक़ को ताक़त समझते और उसके लिए ज़ुल्म के आगे कभी नहीं झुके )  और दूसरी - यज़ीदियत , इस विचार में दुनियाभर की बुराई , ऐय्याशी , फितना , चालबाज़ी , धोखेबाज़ी , बातिल , मुनाफ़िक़त का समावेश रहा , ये ताक़त को ही हक़ समझते हैं। हुसैनियत की सबसे अहम बात ये है की आपको ये हर उस जगह जहाँ हक़ , इंसाफ , इंसानियत , सिला रहमी होगी आपको नज़र आ जायेगी । ये नाम " हुसैन " यूँही एक विचारधारा नहीं बन गया है । हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़ात ए मुक़द्दस और उनकी पाक ज़िंदगी के एक एक लम्हे जो ये बयाँ करते हैं कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जब भी बोले हक़ बोले , जब भी खड़े हुए तो हक़ और इंसाफ के लिए खड़े हुए , अपनी पूरी हयात में उन्होंने सिर्फ दुनिया को हक़, इंसाफ , सिला रहमी,  इंसानियत और बेहतरीन इंसान बनने का ही पैग़ाम दिया । यूँही कोई हुसैन नहीं बन जाता , हुसैन बनना इतना आसान नहीं है । जिन जिन इम्तिहान पर खरे उतरने पर हुसैन बना जा सकता है वो इंसान के सोंच के बाहर है । पूरी ज़िंदगी अल्लाह की रज़ा पर चलना , अल्लाह और पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के दीन पर अपना सब कुछ न्यौछावर कर देना ,अपने नाना हुज़ूर सरवरे कायनात से किये वादे के लिए अपनी ज़िंदगी जीना और सबसे अहम अपने नाना की उम्मत( आने वाली नस्लों ) के लिए उस वक़्त हक़ और इंसाफ के साथ खड़े होना जब साथ मे 72 हों और सामने हज़ारों । इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का एक विचारधारा में बदल जाना इतना आसान नहीं रहा । उन्होंने हक़ के लिए अपने जवान बेटों की शहादत देखी , अपने 6 माह के बेटे को प्यास से तड़पते देखा , अपनी बहनों अपनी बेटियों को प्यास से तड़पते देखा , अपना घर , खानदान , कुनबा सब कुछ हक़ के लिए इंसाफ के लिए अल्लाह के लिए खड़ा किया और अल्लाह की राह में कुर्बान किया । कर्बला की रेत पर प्यास की आलम में यज़ीदी लश्कर की बर्बरता के सामने डटे रहना और दुनिया को ये पैग़ाम सुनाते रहना की किसी भी हाल में हक़ और इंसाफ के साथ खड़े होने में ही सारी इंसानियत और इंसानी क़ौम की भलाई है । हज़ारों के सामने 72 जाँनिसार साथियों के साथ शहादत का जाम पीने वाला ही हुसैन(अ०स) बन पाता है । ना कोई हुसैन जैसा हुआ है और ना ही आगे होगा । अब सिर्फ उनके  विचारों और उनके बताए हुए रास्ते पर चलना ही असल मायने में हुसैन अलैहिस्सलाम को मानना और उनकी पैरवी करना है ।अपने विचारों के ज़रिए शहादत के बाद भी आज तक हुसैन अलैहिस्सलाम का नाम एक विचारधारा के रूप में जिंदा है । 

‌हुसैनियत का दामन थामिए । इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा की पैरवी कीजिये उसपर अमल कीजिये । हमारा आपका यही अमल यही पैरवी असल में उनकी शहादत का इनाम होगा, हमारी तरफ़ से एक खूबसूरत तोहफ़ा होगा ।

इस विचारधारा के समर्थकों और अमल करने वालों को इंशा अल्लाह दुनिया वा आख़िरत में अल्लाह अपनी पनाह में अपनी रहमतों के साए में रखेगा ।

हज़रत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं -


शाह अस्त हुसैन बादशाह अस्त हुसैन

दीन अस्त हुसैन दीन पनाह अस्त हुसैन


सर दाद ना दाद दस्त दर दस्ते यज़ीद

हक़्क़ा के बिनाय ला इलाह अस्त हुसैन ।


हुसैनियत ज़िंदाबाद । या हुसैन ज़िंदाबाद ।

विलादत ए हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम मुबारक 💐💐

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