Wednesday, March 17, 2021

इमाम हुसैन (अ०स) और हुसैनियत

 " हुसैन "  ये सिर्फ एक नाम नहीं एक विचारधारा है । कर्बला के वाक़ये के बाद दो विचारधारा पैदा हुई पहली - हुसैनियत (वो विचार जो हक़ को ताक़त समझते और उसके लिए ज़ुल्म के आगे कभी नहीं झुके )  और दूसरी - यज़ीदियत , इस विचार में दुनियाभर की बुराई , ऐय्याशी , फितना , चालबाज़ी , धोखेबाज़ी , बातिल , मुनाफ़िक़त का समावेश रहा , ये ताक़त को ही हक़ समझते हैं। हुसैनियत की सबसे अहम बात ये है की आपको ये हर उस जगह जहाँ हक़ , इंसाफ , इंसानियत , सिला रहमी होगी आपको नज़र आ जायेगी । ये नाम " हुसैन " यूँही एक विचारधारा नहीं बन गया है । हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़ात ए मुक़द्दस और उनकी पाक ज़िंदगी के एक एक लम्हे जो ये बयाँ करते हैं कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जब भी बोले हक़ बोले , जब भी खड़े हुए तो हक़ और इंसाफ के लिए खड़े हुए , अपनी पूरी हयात में उन्होंने सिर्फ दुनिया को हक़, इंसाफ , सिला रहमी,  इंसानियत और बेहतरीन इंसान बनने का ही पैग़ाम दिया । यूँही कोई हुसैन नहीं बन जाता , हुसैन बनना इतना आसान नहीं है । जिन जिन इम्तिहान पर खरे उतरने पर हुसैन बना जा सकता है वो इंसान के सोंच के बाहर है । पूरी ज़िंदगी अल्लाह की रज़ा पर चलना , अल्लाह और पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के दीन पर अपना सब कुछ न्यौछावर कर देना ,अपने नाना हुज़ूर सरवरे कायनात से किये वादे के लिए अपनी ज़िंदगी जीना और सबसे अहम अपने नाना की उम्मत( आने वाली नस्लों ) के लिए उस वक़्त हक़ और इंसाफ के साथ खड़े होना जब साथ मे 72 हों और सामने हज़ारों । इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का एक विचारधारा में बदल जाना इतना आसान नहीं रहा । उन्होंने हक़ के लिए अपने जवान बेटों की शहादत देखी , अपने 6 माह के बेटे को प्यास से तड़पते देखा , अपनी बहनों अपनी बेटियों को प्यास से तड़पते देखा , अपना घर , खानदान , कुनबा सब कुछ हक़ के लिए इंसाफ के लिए अल्लाह के लिए खड़ा किया और अल्लाह की राह में कुर्बान किया । कर्बला की रेत पर प्यास की आलम में यज़ीदी लश्कर की बर्बरता के सामने डटे रहना और दुनिया को ये पैग़ाम सुनाते रहना की किसी भी हाल में हक़ और इंसाफ के साथ खड़े होने में ही सारी इंसानियत और इंसानी क़ौम की भलाई है । हज़ारों के सामने 72 जाँनिसार साथियों के साथ शहादत का जाम पीने वाला ही हुसैन(अ०स) बन पाता है । ना कोई हुसैन जैसा हुआ है और ना ही आगे होगा । अब सिर्फ उनके  विचारों और उनके बताए हुए रास्ते पर चलना ही असल मायने में हुसैन अलैहिस्सलाम को मानना और उनकी पैरवी करना है ।अपने विचारों के ज़रिए शहादत के बाद भी आज तक हुसैन अलैहिस्सलाम का नाम एक विचारधारा के रूप में जिंदा है । 

‌हुसैनियत का दामन थामिए । इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विचारधारा की पैरवी कीजिये उसपर अमल कीजिये । हमारा आपका यही अमल यही पैरवी असल में उनकी शहादत का इनाम होगा, हमारी तरफ़ से एक खूबसूरत तोहफ़ा होगा ।

इस विचारधारा के समर्थकों और अमल करने वालों को इंशा अल्लाह दुनिया वा आख़िरत में अल्लाह अपनी पनाह में अपनी रहमतों के साए में रखेगा ।

हज़रत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं -


शाह अस्त हुसैन बादशाह अस्त हुसैन

दीन अस्त हुसैन दीन पनाह अस्त हुसैन


सर दाद ना दाद दस्त दर दस्ते यज़ीद

हक़्क़ा के बिनाय ला इलाह अस्त हुसैन ।


हुसैनियत ज़िंदाबाद । या हुसैन ज़िंदाबाद ।

विलादत ए हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम मुबारक 💐💐

Monday, March 8, 2021

Womens And Islam

 

The first person to embrace Islam was a woman; Khadija (ra).


The greatest scholar of Islam was a woman; Aisha (ra).


The person who loved the Prophet (saw) the most was a woman; Fatima (ra).


 

Despite misconceptions, the status of women in Islam is that of a beloved equal. In the midst of a deep historical context, the Prophet (saw) preached boldly on the importance of women; celebrating their unique contributions to family and society, condemning the ill-treatment of women and campaigning for their rights.

Many of the negative stereotypes around women in Islam arise not from Islamic guidance but from cultural practices, which not only denigrate the rights and experiences of women, but also stand in direct opposition to the teachings of Allah (swt) and His Prophet (saw).

Far from the stereotype of the voiceless and veiled Muslim woman, Shaykh Ibn Baaz argues, “There is no doubt that Islam came to honour to the woman, guard her, protect her from the wolves of mankind, secure her rights and raise her status.”

Islam states clearly about womens and their equal fair rights. Islam is totally against of dowry system. Today dowry system is most important loophole in suppression of womens right and their security.

Islam stands strongly with womens in their equal rights of property of parents. I found that Islamic system provides a way by which pre and post marriage life of a women can be summed up smoothly.

Islamic culture of living provides a safer environment for womens. 

On the Occasion of International Womens Day I would like to wish all the womens of the world , have a prosperous and healthy wealthy long life ahead.

I am appealing to the society for a safer , fair and respectful treatments with womens.

I want to thanks all the womens around my personal life for being so caring and providing me a supportive environment.

Friday, February 26, 2021

विलादत-ए-मौला अली अलैहिस्सलाम

 हज़रत अली (अ०स) ये नाम पैकर है ईमान की मज़बूती का , सदाक़त का, शुजाअत का , इमामत का , विलायत का , हक़ व इंसाफ़ का , मज़लूमों व बेकसों के सहारे का , अल्लाह की रज़ा पर अपना सबकुछ कुर्बान कर देने का , ख़ुदा के शेर का , बे सायादार हमारे आक़ा नबी करीम (स०अ०व) के साये का , इस्लाम के उस रहबर का जिसनें हर मौक़े पर ये साबित किया कि वो बेहतर हैं । और भी तारीफ़ें हैं जो कि न तो मेरी हैसियत है न ही मेरे क़लम में वो ताक़त की मैं बयान कर सकूँ । सरजमींने अरब का वो दानिशवर , इकलाखमंद , ताक़तवर , फ़ाकाकश शहंशाह , मुंसिफ , इस्लामी क़ौम का लीडर जिसनें दुनिया व तमाम आलम को ये साबित किया कि नबी करीम ने उन्हें क्यों जंगे ख़ैबर में अलम थमाया और तमाम हाजरीन से शहादत लेते हुए ये एलान किया - मन कुंतो मौला हू , फ़ा हाज़ा अली उन तू मौला हू ।(जिसका मैं मौला , उसका अली मौला ) । और भी तमाम हदीस मौजूद हैं जो हज़रत अली की शान व उनके मर्तबे को बयाँ करती हैं । हज़रत अली ने दुनिया को अपने खूबसूरत और बेमिसाल अल्फ़ाज़ों से नवाज़ा है जिसपर अमल करने से किसी भी शक़्स को दुनिया व आख़िरत में कभी रुसवाई ना होगी । हज़रत अली(अ०स) के क़ौल को अमल में लाना तमाम मुश्किल हालात व परेशानी दूर कर सकती है ।

तो आइये यौमे विलादत हज़रत अली ( अ०स) हम सब कोशिश करें उनके बताए हुए रास्ते (जो कि हमारे नबी का बताया हुआ रास्ता है) पर चलते हुए हम सब अपने ईमान और हालात को सँवारे । 

यौमे विलादत हज़रत अली (अ०स) की पुरखुलूस मुबारकबाद🌹🌹🌹💐💐💐


शाहे मरदाँ , शेरे यज़दाँ , क़ुव्वते परवरदिगार

ला फ़ता इल्ला अली ला सैफ़िल्ला ज़ुल्फ़िकार

Monish Fareed Siddiqui

Sunday, February 14, 2021

प्रेम का वास्तविक रूप

जब आप प्रेम में होते हैं और ओस की हर बूंद, पेड़ का हर पत्ता और धरती का हर कण जान लेता है कि आप प्रेम में है। जब प्रेम होता है तो बस प्रेम ही होता है। ‘मैं’, ‘तुम’, ‘यह’, ‘वह’, ‘इससे’, ‘उससे’ कुछ नहीं रह जाता, बस प्रेम रहता है। प्रेम को आप सोच नहीं सकते, प्रेम पर विमर्श नहीं कर सकते, प्रेम को उत्पन्न नहीं कर सकते, प्रेम को अपना नहीं सकते… प्रेम है असीमित और असृजित! प्रेम तो बस होता है- अनंत, अनादि और अनहद!

“क्या आप प्रेम के रास्ते पर चलना चाहते हैं? तो, पहली शर्त यह है कि खुद को धूल और राख जितना अकिंचन बनाइए।” –जलालुद्दीन रूमी
“प्रेम का अर्थ साथ जीने के लिए किसी को पा लेना नहीं है, बल्कि ऐसे व्यक्ति को पाना है जिसके बिना जिया न जाए।” –रफाएल ऑर्टिज़

प्रेम क्या है, अगर समझो तो भावना है, 
इससे खेलो तो एक खेल है । 
अगर साँसों में हो तो श्वास है और दिल में हो तो विश्वास है, 
अगर निभाओ तो पूरी जिंदगी है और बना लो तो पूरा संसार है ।

प्रेम तो वही है जो हृदय की अनंत गहराई से किया जाता है और जिसमें मैं नहीं हम की भावना हो।

प्रेम तो जिया जाता है, पाया नहीं जाता है । 
सिर्फ पाने के लिए प्रेम किया जाए वो व्यापार होता है ।

प्रेम, ईश्वर है, जब तक इसमें आसक्ति और स्वार्थ न मिलाया जाए। जब इसमें स्वार्थ मिलेगा तब प्रेम नहीं होगा ।

खुसरो दरिया प्रेम का उल्टी वा की धार
जो उतरा सो डूब गया , जो डूबा सो पार.......

Saturday, October 24, 2020

मोहब्बत और क़ुरबानी

 

मोहब्बत और क़ुरबानी का एक अज़ीम रिश्ता होता है । पाक और सच्ची मोहब्बत बिना क़ुरबानी के मुकम्मल नहीं हो सकती । क़ुरबानी से मुराद सिर्फ जान की कुर्बानी ही नहीं बल्कि वो तमाम सारी चीज़ें हैं जो ये साबित करती हों कि मोहब्बत सच्ची और रूहानी है । सबसे अज़ीम कुर्बानी वो मानी जाती है जब आप अपने दिल के सबसे क़रीब, सबसे चहेते चीज़ को कुर्बान करें । कुर्बानी के अलग अलग दर्जात होते हैं । अजीज़ से अजीज़ चीजों को कुर्बान करना इसमें दर्जात को ऊँचा करता है । मोहब्बत की अपनी एक अलग ही कैफ़ियत होती है । मोहब्बत का सीधा ताल्लुक़ दिल से होता है बल्कि यूँ कहें कि दिल की पाकीज़गी से होता है । दिल में पाकीज़गी से मेरा मतलब है दिल में महबूब को पाने की शिद्दत से है । आप अपने महबूब को पाने के लिए जितने बेताब होंगे वही बेताबी ही आपमें कुर्बानी देने का जज़्बा पैदा करेगी । जब आप किसी से मोहब्बत करते हैं तो उसके लिए अपने क़िरदार में नरमी और सलाहियत पैदा करते हैं । हर वो अदा सीखते हैं/ करते हैं जिससे कि आपके महबूब को आपकी कोई भी एक अदा पसंद आ जाये और आप उसे पसंद आ जाएं । इश्क़ वो आग है जो महबूब के सिवा सबकुछ जला देती है । जला देने से मतलब आप इश्क़ में होते हुए अपने अंदर के तमाम ऐब और फ़ितने को कुर्बान कर देते हैं । इश्क़ दो तरह के होते हैं - इश्क़ मजाज़ी और इश्क़ हक़ीक़ी । इश्क़ मजाज़ी(इंसान से इश्क़) और इश्क़ हक़ीक़ी(ख़ुदा से इश्क़) । जब इश्क़ मजाज़ी हद से गुज़र जाता है तो वह खुद ब खुद इश्क़ हक़ीक़ी हो जाता है । इश्क़ एक खामोश इबादत है जिसकी मंज़िल जन्नत नहीं दीदार-ए-महबूब है ।
जब किसी से इश्क़ हो जाता है, तो हो जाता है । इसमें लाज़िम है महबूब का होना (क़रीब) या न होना । क्योंकि इश्क़ तो 'उससे' हुआ है , उसकी ज़ात (वजूद) से हुआ है । उस 'महबूब' से जो सिर्फ़ 'जिस्म' नहीं है । वो तो ख़ुदा के नूर का वो क़तरा है, जिसकी एक बूंद के आगे सारी कायनात बेनूर लगती है । इश्क़ इंसान को ख़ुदा के बेहद क़रीब कर देता है । इश्क़ में रूहानियत होती है ।  इश्क़, बस इश्क़ होता है । किसी इंसान से हो या ख़ुदा से ।
मैंने तमाम ऐसे वाक़यात सुने या पढ़े हैं जिसमें इश्क़ हद से गुज़र गया है । जैसे की अल्लाह के लिए हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का इश्क़ जिसमें उन्होंने अपने बेटे तक को कुर्बान करने का फ़ैसला किया । हज़रत मूसा का अल्लाह से इश्क़ , सहाबा हज़रात का हुज़ूर सरवरे कायनात के लिए इश्क़ , अहलेबैत से हुज़ूर का इश्क़ और हुज़ूर से अहलेबैत का इश्क़ , उम्मत के लिए हुज़ूर और अहलेबैत के दिल मे इश्क़ ,हज़रत अवैस करनी का हज़रत मुहम्मद(स०अ०व) के लिए इश्क़ , तमाम औलिया इकराम , वली अल्लाह का अल्लाह से लिए इश्क़ जिसमें कुछ मुझे जो मालूमात है - हज़रत ख़्वाजा गरीब नवाज़ , हज़रत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी , हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया का अल्लाह से इश्क़ , हज़रत अमीर खुसरो का हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया से इश्क़ , हज़रत वारिस पाक का , हज़रत हज़रत साबिर पाक का , तमाम मुरीदों का अपने पीर ओ मुर्शिद के लिए इश्क़ ,हज़रत मौलाना रूम का हज़रत शमसुद्दीन से इश्क़ , लैला का कैस से , मीरा का कृष्ण से , सबरी का राम से , सम्राट अशोक का भगवान बुध्द से और दीगर वाक़यात गुज़रे हैं जो कि इश्क़ की उरूज़ पर पहुँचे ।  लेकिन उन तमाम इश्क़ों में मुझे सबसे बेहतर और सबसे आला इश्क़ करबला में नज़र आया या यूँ कहें कि वो इश्क़ जो अहलेबैत में था वो किसी में नही देखा गया । चूँकि अल्लाह और अपने नाना(हज़रत मुहम्मद स०अ०व की उम्मत) के इश्क़ के उस मक़ाम पर करबला था जब कि इश्क़ में हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने आल व औलाद को कुरबान करने से पीछे नहीं हटे । 6 महीने के दुधमुंहे बच्चे तक को अल्लाह की रज़ामंदी के लिए शहीद होता देखा । सबकुछ हाथ मे होते हुए भी अपने इश्क़ में बंधे रहे और अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया । लेकिन इसके बदले उन्हें वो चीज़ मिली जो एक आशिक़ को चाहिए होती है ।
किसी ने क्या ख़ूब कहा है-

मुकम्मल दो ही दानों पर
ये तस्बीह-ए-मुहब्बत है
जो आए तीसरा दाना
ये डोर टूट जाती है

मुक़र्रर वक़्त होता है
मुहब्बत की नमाज़ों का
अदा जिनकी निकल जाए
क़ज़ा भी छूट जाती है

मोहब्बत की नमाज़ों में
इमामत एक को सौंपो
इसे तकने उसे तकने से
नीयत टूट जाती है

मुहब्बत दिल का सजदा है
जो है तैहीद पर क़ायम
नज़र के शिर्क वालों से 
मुहब्बत रूठ जाती है
©मोनिश फ़रीद सिद्दीक़ी

Tuesday, September 29, 2020

हृदय का मूल स्वरूप

 आज विश्व हृदय दिवस है । यह अलग बात है कि ये दिन हृदय स्वास्थ्य संबंधित रोगों के प्रति जागरूकता और उसके उपचार संबंधी जागरूकता के लिए पूरे विश्व में मनाया जाता है । मेरा मानना है कि हृदय को स्वस्थ रखने का एक उपाय आध्यात्म और सूफ़ीवाद भी है । ये एक ऐसा मार्ग है जिससे हृदय परिवर्तन सबसे तीव्र और सबसे असरदार होता है । हृदय को स्वस्थ रखने के लिए जहाँ चिकित्सा विज्ञान अपना तरीका बताता है वहीं दूसरी तरफ आपको सूफ़ीवाद और आध्यात्म इससे स्वस्थ रहने और सफल रहने का एक अलग मार्ग दिखाता है । खानपान में संतुलन न होना , नियमित शारीरिक व्यायाम का न होना और साथ ही वो मनोदशा जो आपको हमेशा वो बातें सोंचने पर मजबूर करती हैं जो आपके हृदय पर अतिरिक्त भार ,दबाव और कुंठा उत्पन्न करते हैं । यही भार , दबाव और कुंठा आपके हृदय को विचलित करते रहते हैं जिससे आपका मन और आपका मस्तिष्क हमेशा उन गलियों में विचरण करते रहते हैं जहाँ का रास्ता बीमारियों की तरफ बढ़ता रहता है । जहाँ तक सूफ़ीवाद और आध्यात्म के मार्ग से उपचार की बात है तो उसके पीछे तर्क यह है कि ये मार्ग हमेशा संसार और उसमें व्याप्त अनैतिक , असामाजिक और अधार्मिक कार्यों से आपको दूर रखने में सहायक है । सूफ़ीवाद का तो उद्देश्य ही है टूटे हुए (मनोवैज्ञानिक रूप) दिलों को सहारा देना या उनमें वो आत्मविश्वास पैदा करना जिससे उनकी मनोदशा सकारात्मक हो । तमाम धर्मों ने अपने उद्देश्यों में हृदय के शुद्ध होने और उसमें प्रेम , भावना , स्नेह, करुणा,परोपकार, दीनता ,सकारात्मकता,पर मुख्य रूप से बल दिया है असल मे यही हृदय की शुद्धता का अर्थ भी है । एक स्वस्थ और शुद्ध हृदय के निर्माण में सूफ़ीवाद और आध्यात्म की शिक्षा आवश्यक है ।

प्रेम का निवास साथ हृदय को माना जाता है,लेकिन हृदय ही क्यों?कोई और जगह क्यों नही ?क्या आपने कभी सोचा है इस बारे में?क्योंकि हृदय के अंदर हमारे शरीर की समस्त शक्तियों का वास होता है।अगर हमारा अन्तःकरण शुद्ध है,हमारा हृदय पवित्र है तो सर्वप्रथम किसी भी वस्तु,प्राणी या जीव के अंदर प्रथम प्रेम की अनुभूति यहीं से प्रारम्भ होती है।और मन के विचारों द्वारा पुष्ट होती है,फिर चाहे वो प्रेम सजीव के लिए हो या निर्जीव के लिए।बहुत से लोग बस विपरीत लिंग आकर्षण को ही प्रेम मानते है। वस्तुतः ये सच बात नही है,प्रेम को हम किसी विचारधारा में नही बांध सकते है,क्योंकि ये सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का आधार प्रेम है ,प्रेम पर ही टिक हुआ है ये समस्त संसार।कुछ लोग अक्सर कर कूछ लोग आकर्षण को ही प्रेम समझ लेते है,जबकि आकर्षण और प्रेम में बहुत बड़ा अंतर है।आकर्षण प्रेम का पहला पायदान जरूर है ,परंतु वास्तव में आकर्षण में प्रेम नही है।प्रेम तो असीमित ,अकल्पित,अपरभाषितअपरमिति,और अकथनीय उस परिकल्पना है जिसको समझ आ गयी वो इस दुनिया के राग रंग को छोड़कर बस उसी में समाहित हो जाता है।मोहरहित हो जाता है।हालाँकि यहां कुछ विद्वान लोग इस बात से सरोकार नही रखेंगे की मोह के बिना भी प्रेम हो सकता है क्या?तो उन विद्वानों को बता दूँ प्रेम में अगर मोह है तो वो प्रेम की सम्पूर्णता नही है,क्योंकि मोह में हमेशा स्वार्थ छिपा होता है,और जहां स्वार्थ होता है वहां प्रेम हो ही नही सकता।हालाँकि ये बात सोचने में थोड़ी अजीब लग सकती है परंतु ये कटु सत्य है।क्योंकि प्रेम की पूर्णता तो उसके अपने अंदर ही समाहित है।


        सूफ़ीवाद तथा आध्यत्मिक शिक्षा में हृदय का महत्व


सूफ़ीवाद तथा आध्यात्मिक शिक्षा का मूल भाव ही हृदय है । इन विषयों की शिक्षाओं में हृदय की शुद्धता और हृदय संबंधित मनोभावों की शुद्धता पर अत्यधिक बल दिया जाता है । ये विषय मनुष्य को संसार में फैले सांसारिक रोग (कपट,द्वेष,ईर्ष्या, लोभ,नकारात्मकता,सामाजिक और धार्मिक असहिष्णुता , सभी प्रकार की कलह , मानसिक विकार , और मानसिक तनावों) से दूर रखते हुए जीवन को आनंदमयी और सैद्धांतिक मूल्यों के साथ निर्वहन करने की शिक्षा देते हैं । मैंने सूफ़ीवाद को मनुष्य के अंतर्मन का अहम विषय मानते हुए अनेकों सूफ़ी संतों और आध्यात्मिक गुरुओं के जीवन और उनके उपदेशों को पढ़ा और सुना है । इस विषय की शिक्षा प्राप्त करने में मैंने मौलाना जलाउद्दीन रूमी का ये शे'र काफी सार्थक पाया -


"यक ज़माना सोहबते बा औलिया

बेहतर अज़ सद साला ता'अत -ए-बे रिया"


अर्थ- किसी औलिया की सोहबत का एक अरसा आपके उस इबादत से बेहतर जिससे घमंड, ईर्ष्या ,धूर्तता ,कपट आदि का अंत न होता हो ।

इस शेर के ज़रिए मौलाना रूमी ने ये बताने की कोशिश की है कि या तो आपकी इबादत ऐसी हो जिससे सामाजिक और मानसिक विकार को दूर हों या फिर आप सोहबत किसी औलिया की करिए जिससे आपको वो ज्ञान प्राप्त हो जो हृदय और जीवन दोनों पर सकारात्मक प्रभाव का प्रकाश फैलाये । औलिया किसी मनुष्य को तब कहा जाता है जब उसमें सांसारिक लोभ,कपट,लालच,ईर्ष्या, मोह-माया, बेईमानी,छल,द्वेष,बदला लेने की भावना,इत्यादि बुराइयाँ न हों ।

ऐसे व्यक्ति आपको शिक्षा भी अपने हृदय की गहराईयों से देंगे और उनकी शिक्षा का असर भी होगा । 

प्रत्येक धर्म में ये शिक्षा दी गयी है जिसमें कहा जाता है कि हर मनुष्य को दूसरों के प्रति प्रेम और संवेदना के साथ ही दयालुता और भाईचारे से आपस में मिल-जुल कर जीवन व्यतीत करना चाहिए । 

खासतौर पर अगर इस्लाम की बात करूँ तो इस्लाम में पैगंबर मुहम्मद ने ही इस सबसे पहले इस बात पर ज़ोर दिया कि किसी का दिल दुखाना सबसे बड़ा गुनाह है । इस्लाम के अनुसार कयामत के दिन सारे गुनाहों की माफ़ी अल्लाह से होगी लेकिन किसी से व्यक्तिगत तकलीफ की माफी उस शख्स से ही होगी जिसका आपने दिल दुखाया या नुकसान किया है ।इस्लाम आपकी ऐसी किसी इबादत को सही नहीं मानता जिसके करने से आपके दिल से बुराइयाँ दूर न होती हों । जिस इबादत को करने के बावजूद आपमें वो ऐब मौजूद हैं जिससे समाज में गंदगी फैलती हो तो वो इबादत आपके मुँह पर फेंक दी जाएगी ।

सूफ़ीवाद और आध्यात्म अपने धार्मिक शिक्षा के तहत ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग भी हृदय को ही बताते हैं । चूँकि इन विषयों के अनुसार ईश्वर का निवास स्थान ही हृदय है । ईश्वर का कोई भौतिक स्वरूप तो होता नहीं है ईश्वर इस ब्रह्माण्ड के कण-कण में समाहित है ।वह ढूँढने वालों की निगाहों में या उसके जज़्बे में ही निहित होता है । ढूँढने वालों ने तो इसे मनुष्य के हृदय में ही सबसे नज़दीक पाया है । तमाम ऐसे उदाहरण हैं जिससे यह साबित होता है कि किसी औलिया या सोहबत से अनेकों को ईश्वर की प्राप्ति हुई है । वे उस मक़ाम पर जा पहुँचते हैं जहाँ से उनके बोले गए हर एक शब्द ईश्वर के शब्द हो जाते हैं । ईश्वर का संदेश हर धर्म की अपनी किताबों या देवदूतों की वाणी के संग्रह से आपको मिल जाएगा लेकिन उसे व्ययवहारिक और क्रियात्मक रूप से इन्हीं सूफी संतों और आध्यात्मिक गुरुओं ने फैलाया है । इन्होंने ही अपने जीवन में धार्मिक आदर्शों को समाहित कर दुनिया को ये बताया है कि ईश्वर तक पहुँचने का सीधा , साफ और निकट मार्ग हृदय है । सूफ़ीवाद में हृदय का मार्ग कहता है कि दूसरों से अच्छा सुलूक करो , भूखे को खाना खिलाओ , किसी पर ज़ुल्म न करो , घमंड ईर्ष्या हसद किना बुग्ज़ न रखो , लालच न करो , धोखा न करो , बुराई न करो , चोरी और बेईमानी न करो , औरतों से इज़्ज़त से पेश आओ , बुजुर्गों की खिदमत करो , बच्चों को प्यार दो , जीव-जंतुओं से प्यार करो, प्रकृति से प्रेम करो उसका ख्याल करो, किसी को ठेस न पहुँचाओ , किसी से भेदभाव न करो , सांसारिक रूप से जिसमे धन दौलत रुतबा हो और धार्मिक आधार से जहाँ जात-पात का भेदभाव हो इससे दूर होकर सबको बराबर समझो ,विद्वान की इज़्ज़त करो उससे विधा हासिल करो , सत्य की तलाश करो , हक़ के साथ डटे रहो इत्यादि ।

उदाहरण -1- समनान के बादशाह अशरफ़ जहाँगीर का हृदय परिवर्तन भी एक औलिया ने किया जिससे उन्हें ये ज्ञान हुआ कि ईश्वर उन्हें महलों में नहीं बल्कि दुनिया की तमाम बुराइयों से दूर होने पर ही मिलेगा और उन्होंने अपना राजपाट छोड़ दिया और निकल पड़े असल दुनिया की तलाश में जिसके प्राप्त होने पर उन्हें हज़रत मख़्दूम अशरफ़ जहाँगीर समनानी र०अ के नाम से जाना जाने लगा और वे किछौछा उत्तरप्रदेश में रहने लगे । उनकी प्रसिद्धि के चर्चे पूरे हिंदुस्तान में हैं और आजतक उनकी मज़ार पर फूलों की चादर के साथ अकीदतमंद अपने दुखों तथा परेशानियों के निवारण के लिए अपना दामन फैलाये खड़े रहते हैं ।

2- राजकुमार सिद्धार्थ ने एक पक्षी की करुणा पर अपना राजपाट और विलासिता का जीवन त्याग कर सत्य अहिंसा और ब्रह्म के तलाश में निकल पड़े और अन्ततः उन्हें वो हासिल हुआ । आज दुनिया भर में उनके अनुयायी उनके उपदेशों का पालन करते हुए अपने जीवन को सुखी और समृद्ध महसूस करते हैं ।


3- मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आचरण , निष्ठा ,कर्तव्यपरायणता, न्याय,और वचनबद्धता को देख लीजिए जिससे उन्हें पूरी दुनिया महाराजा श्री राम से मर्यादा पुरुषोत्तम राम कहने लगी । 


असल में आप किसी भी धर्म के उपदेशों , उनके ईश्वरीय दूतों के उपदेशों या धर्म के सही मार्ग पर चलेंगे तो हर जगह आपको हृदय का ही महत्व नज़र आएगा । और इसी मार्ग पर चलते हुए आपको सुख , समृद्धि तथा शांति का एहसास होगा । 

अंत में सबको एक सलाह देते हुए अपना लेख समाप्त करता हूँ कि मनुष्य के भीतर और प्रकृति के कण कण में वास करने वाले ईश्वर को पहचानिए और उसे प्राप्त कीजिये । जीवन सफल हो जाएगा । आप सुख और शांति से आनंदमयी जीवन व्यतीत कर सकेंगे।

हृदय दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं आपको एक स्वस्थ और शुद्ध हृदय के लिए दुआओं सहित ढेर सारा प्यार ।

©मोनिश फ़रीद सिद्दीक़ी



Tuesday, September 22, 2020

Islam and Peace

 Islam is the religion of peace and mercy for all creatures. But, now a day, some extremist has spread misconception about the Islam, that as, it is the religion of sword for terror. But, the actual fact is that, Islam is the religion of peace and it condemns extremism and violence. Islam promotes the peace, calm, harmony, any tranquility in society. Islam is a peaceful religion, it's best examples, we can see, in the practical life of Holy Prophet (peace and blessing of Allah be upon him, PBUH). He was the messenger of Allah (SWT) to convey the message of honesty, piousness, peace, mercy, integrity, and love. He had never done any activity which indicate act of terrorizing, misconduct, racism and violation against humanity. Even though, he showed the mercy on animals, insects and plants. The world knows him, as a 'Rehmatul-Lil-Aalamin' or Mercy into the world. From the life of Holy Prophet (PBUH), it is concluded that Islam is the religion of peace and humanity. It did not spread by the forced of sword, rather, it spread by its golden quality. Islam basically educates the ways of pleasant and peaceful manners to regulate the society and as well as the world. Through this article, this message has been conveyed, that Islam is a peaceful religion for all creatures and have been given examples from the life of Hazrat Muhammad (PBUH)

आओ पहले मतदान करें

आओ पहले मतदान करें  , फिर बैठें जलपान करें ।। देश के विकास में , स्वच्छ समाज की आस में मिलजुल कर योगदान करें ,आओ पहले मतदान करें । कृषि और क...